Indicators on विश्व का इतिहास You Should Know

परमार राजवंश – परमार या पँवार मध्यकालीन भारत का एक क्षत्रिय राजवंश था। इस राजवंश का अधिकार धार-मालवा-उज्जयिनी-आबू पर्वत और सिन्धु के निकट अमरकोट आदि राज्यों तक था। लगभग सम्पूर्ण पश्चमी भारत क्षेत्र में परमार वंश का साम्राज्य था। ये ८वीं शताब्दी से १४वीं शताब्दी तक शासन करते रहे। मूल शब्द प्रमार के क्षेत्र के अनुसार अलग अलग अपभ्रंश है जैसे पोवार, पंवार, पँवार, पवार और परमार।

 इस काल की जानकारी के लिए पुरातात्विक एवं साहित्यिक दोनों प्रकार के स्रोत उपलब्ध हैं, परंतु यहाँ सिर्फ साहित्यिक स्रोतों का विवरण दिया जा रहा है –

उसळलेल्या गर्दीतून प्रत्येक जण जमेल तसं देवीचं दर्शन घेत होते.

अशोक के बाद अभिलेखों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है- राजकीय अभिलेख और निजी अभिलेख। राजकीय अभिलेख या तो राजकवियों द्वारा लिखी गई प्रशस्तियाँ हैं या भूमि-अनुदान-पत्र। प्रशस्तियों का प्रसिद्ध उदाहरण हरिषेण द्वारा लिखित समुद्रगुप्त की प्रयाग-प्रशस्ति check here अभिलेख (चौथी शताब्दी) है जो अशोक-स्तंभ पर उत्कीर्ण है। इस प्रशस्ति में समुद्रगुप्त की विजयों और उसकी नीतियों का विस्तृत विवेचन मिलता है। इसी प्रकार राजा भोज की ग्वालियर प्रशस्ति में उसकी उपलब्धियों का वर्णन है। इसके अलावा कलिंगराज खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख (प्रथम शताब्दी ई.

गैर-इतिहासकार मुख्य रूप से टेलीविजन, फिल्मों और इंटरनेट के साथ-साथ कुछ जानकारी प्राप्त करते हैं किताबें या पत्रिकाएँ। वे आम तौर पर किसी भी स्रोत को बिना आलोचनात्मक रूप से स्वीकार करते हैं जब तक कि स्रोत दिलचस्प हो। इतिहासकार जानते हैं कि सभी स्रोतों, यहां तक ​​कि किसी विशेष ऐतिहासिक समय अवधि के मूल स्रोतों में भी कुछ न कुछ होता है पूर्वाग्रह, चूक, अंतर्विरोध, या विभिन्न अन्य सीमाएं। इसका मतलब यह नहीं है कि ऐसे स्रोत हैं पूरी तरह से अमान्य और बेकार; बल्कि इसका मतलब है कि इतिहासकारों को पहचानने के लिए बहुत कुछ जानना और अध्ययन करना होगा विभिन्न स्रोतों की ताकत और कमजोरियां।

उत्तर प्रदेशमधील प्रतापगढमध्ये कृपालू महाराज यांच्या रामजानकी मंदिरात अन्न आणि कपड्यांचं दान होत असताना लोक जमले होते.

सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में विस्तार से

मानव समाज में अपने सबसे शुरुआती ज्ञात उपयोगों में, इतिहास केवल एक पिछली घटनाओं का कथात्मक लेखा-जोखा था। एक शब्द के रूप में, यह फ्रेंच फॉर्मूलेशन से अंग्रेजी भाषा में प्रवेश किया इतिहास की, इतिहास की लैटिन धारणा, और ग्रीक में इस्टोरिया की रचना, इनमें से प्रत्येकजो अतीत के ज्ञान की मूल भावना का प्रतिनिधित्व करता है। इन प्रारंभिक अवधारणाओं में, इतिहास की भावना में घटनाओं की एक कल्पनाशील कहानी और एक कथा या दोनों शामिल हैं पिछली घटनाओं का क्रॉनिकल।

इतिहासकारों ने तारीख-ए-शेरशाही को आधार बनाकर ही शेरशाह का इतिहास लिखा है। डॉ॰ निगम के अनुसार, ‘‘अब्बास खां ने अनेक घटनाओं से सम्बन्धित अपने सूचना स्रोतों का भी उल्लेख किया है। अतः इस पुस्तक के तथ्यों में कोई संदेह नहीं है। बड़ी-बड़ी घटनाओं की पुष्टि हुमायूं से सम्बन्धित अन्य इतिहासों से भी होती है। शेरशाह का सम्पूर्ण विवरण जितना विस्तारपूर्वक इस ग्रंथ में मिलता है, उतना किसी अन्य में नहीं।’’ अब्बास खां ने इस ग्रंथ को बड़ी बुद्धिमत्ता तथा सावधानी से लिखा है। उसने लिखा है कि, ‘‘जो कुछ इन विश्वसनीय पठानों के मुख से, जो साहित्य तथा इतिहास में निपुण थे और उनके राज्य के प्रारम्भ से अंत तक उनके साथ थे तथा विशेष सेवा के कारण विभूषित एवं सम्मानित थे, सुना था। अन्य मनुष्यों से जो कुछ छानबीन कर प्राप्त किया था, उसको मैंने लिखा। जो कुछ उनके विरूद्ध सुना था और जांच की कसौटी पर नहीं उतरा था, उसे त्याग दिया।’’

भारत में प्रागैतिहासिक संस्कृतियाँ : मध्यपाषाण काल और नवपाषाण काल

जियाउद्दीन बरनी रचित तारीख-ए  फिरोजशाही द्वारा बलबन के राज्याभिषेक से फिरोज तुगलक के शासनकाल के छठवें वर्ष तक के इतिहास की जानकारी मिलती है।

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पतंजलि द्वारा रचित “महाभाष्य” तथा कालिदास द्वारा रचित “मालविकाग्निमित्र” से शुंग वंश के इतिहास के बारे में ज्ञात होता है। शूद्रक द्वारा रचित “मृच्छकटीकम” तथा दंडी द्वारा रचित “दशकुमारचरित” से गुप्तकाल की सामजिक व्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है। बाणभट्ट द्वारा लिखी गयी हर्षवर्धन की जीवनी “हर्श्चारिता” में सम्राट हर्षवर्धन का गुणगान किया गया है। जबकि वाकपति द्वारा रचित “गौडवाहो” में कन्नौज के शासक यशोवर्मन और विल्हण के “विक्रमांकदेवचरित” में कल्याणी के चालुक्य शासक विक्रमादित्य षष्ठ की उपलब्धियों का गुणगान किया गया है।

माना जा सकता है। इस प्रसिद्ध ग्रंथ में कश्मीर के नरेशों से संबंधित ऐतिहासिक तथ्यों का निष्पक्ष विवरण देने का प्रयास किया गया है। इसमें क्रमबद्धता का पूरी तरह निर्वाह किया गया है, किंतु सातवीं शताब्दी ई. के पूर्व के इतिहास से संबद्ध विवरण पूर्णतया विश्वसनीय नहीं हैं।

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